Thursday, April 7, 2016

परिंदा

मत पूछ मुसाफिर हाल परिंदे का
उड़ने को बस एक पिंजरा है 
सपनो की उड़ाने आज़ाद है
मगर पंख फ़ैलाने को जगह कुछ ना ख़ास है 
दाना मिलता है मेरी चहचाहट सुनने को
पानी मिलता है मेरी धड़कन जिन्दा रखने को 
मेरी चीख को चहकना समजते है
मेरे दर्द को बहकना समजते है 
उनका मनोरंजन हो जाता है
इस काबिल एक परिंदा समजते है 

इस काबिल एक परिंदा समजते है .......

No comments:

Post a Comment

Thanks for visit this blog