Sunday, June 28, 2015

फसल प्यार की

जिसको जो बोहना है बोह दो
बरखा का उपजाऊ मौसम है
चाहे तो दीवारें बोह दो
चाहे तो तलवारे बोह दो
चाहे सींचो खुशियाँ अपनी
चाहे तो सीमाऐं खींचो
हो सके तो सीचों फसल प्यार की

फसल पकेगी अंश मिलेगा
कही लाभ कही दंश मिलेगा
मेहनत से सिचोग़े इतना
उसमे इंसा कहाँ मिलेगा
अहम् का हल फिर चला न लेना
धरती को चुभा न देना
अगर कांटे ही बोने है
तो बैलों पे हल लगा ना देना

तेरे खेत खलिहान में
बस तेरा ही धान होगा
मेरी मेहनत मट्टी में
मेरा कहाँ मान होगा
मेरा क्या मैं तो चल दूंगा
भूखा तो किसान होगा
समझ के बो ना फसल अपनी
नहीं तो रूप मेरा तूफ़ान होगा
हो सके तो खुशियाँ बो ना
उससे जीवन खुशहाल होगा

फसल अगर काँटों की होगी
उसमें जीवन उलझ जायेगा
कहीं रिश्ता कट जायेगा
कहीं भरोसा फट जायेगा
बीज बो ने से दुःख ना होगा
पर काँटों की जब फसल पकेगी
उन काँटों की चुभन दुखेगी
जहर जब फैलेगा उसका
अखियों से फिर नदी बहेगी
लेकिन जो खुशियाँ बोयेगा
उसकी फसल खूब बिकेगी..

Friday, June 12, 2015

मर्ज़ ए ताबीज

दर्द के पैमाने में अश्क की शराब है
दिल इसे पी रहा है , ये भी एक शबाब है |
मौत के दीदार की, गड़ीयाँ इंतज़ार की,
बे वजह की खीज पे गुस्से का गुबार है |
हर चुभन को पी रहा, बन रहा शैलाब है |
दर्द लाजवाब है,
जख्म बेहिसाब है,
टूटती धड़कनो को आज भी इक नाज़ है |
उस नाज़ का एक ताज है
ये मेरी प्रीत का अंदाज़ है |

मर रहा इंसान और सज रही तस्वीर है,
इक वफ़ा के नाम पे लूट रही तकदीर है |
रंजिशों की चादरों से लाश इश्क की ढंकी है ।
इश्क के नुमाइंदों ने चाल वज़ीर सी चली है ।
खुद की शर्मिंदगी से जालसाज़ी आ गयी,
खुद की बेवफाई पे जूठी कहानी छा गयी |
सुन रहे जो लोग है छल रहे कुछ लोग है 
रंग रहे तस्वीर ऐसी सच मगर कुछ और है |
तेरे चुने इन रंगों से तू ,
तस्वीर मेरी ना बना पायेगा
मैं ठहरा मामूली शीशा |
जो रंग मुझपे चढ़ायेगा तो
खुद को ना देख पायेगा |

पत्थर भी इक मारोगे तुम
तो खुद अपने को बिखरा पाओगे |
जो बढाओगे फिर इक कदम
हर कदम पे जख्म ही पाओगे |

बस यही आखरी अल्फाज़ है कि
नब्ज कोई थामे और धड़कने गुमनाम हो ,
बेवफा के सामने बस इश्क का ही नाम हो |
गुस्से की उस आग को
बस इश्क का पैगाम हो
और ये आखिरी सलाम हो |
खुद अपने गहनों की कीमत गिरा रहे है लोग
फिर टूटे गहनों को लिए अश्क बहा रहे है लोग |



खुद को तराशने में चोट मूरत खाती है ,
खुद को तलाशने में जिंदगी बीत जाती है |
मैं तो बस संभल रहा था ,
संभलते ही सामने मौत आ जाती है |
यारो ये जिंदगी है,
कभी महोब्बत से मौत और
कभी मौत से महोब्बत हो जाती है |

आजकल प्यार का वास्ता आपके द्वारा दी गयी सुविधाओं से होता है
और कौन आपका साथी है सहारा है
इसका पता जिंदगी मे आयी कुछ दुविधाओं से होता है ।
और मुहब्बत वो जहर है
जो जुबां को लजीज
दिल को अजीज और
और दुनिया को एक दहलीज़ लगता है
फिर भी 
उस पार खड़े उन दीवानों को

ये मर्ज़ ए ताबीज लगता है |