Thursday, November 7, 2013

वज़ह होती है जो बे वज़ह होती है

मेरी नींदों की रुसवाई भी एक वज़ह रखती हैं,
मेरी ये तन्हाई भी एक वज़ह रखती हैं,
तेरी वफाओं पे अपनी उम्मीदों को क्या सझाया
आज मेरे टूटे सपने भी इक वज़ह रखते हैं l

यूं तो हम कुछ नहीं उनकी महफ़िल ए जिन्दगी में
पर अपनी कशिश का इक वज़ूद रखते हैं l
आज वादों से कुछ खफ़ा हूँ
पर अपनी बेवफाई की इक वज़ह रखते हैं l

शायद इतना चूर था आशिकी में कहीं
इसलिए अपनी महोब्बत की इक वज़ह रखते है l
आज उनको मेरे ज़स्बतों से वास्ता ना रहा
जिस मंजिल को पाने की कौशिश की थी
आज उसका रास्ता ना रहा
इसलिए मुड़ जाने की वज़ह रखते हैं l

यूं तो गुनगुनाता था तेरे लिए
कभी कोई गीत बन जाता था
हमें अपनी बेगुनाही से नफरत हो गयी है
इसलिए अपनी ख़ामोशी की इक वज़ह रखते है

तुमने जो खोया वो बेवज़ह ना था
मगर हमारी नींदों का क्या
उस राहत का क्या
उस चैन का क्या
इसलिए आज चैन से सो जाने की वज़ह रखते हैं l
एतबार महोब्बत का बे वज़ह रखते है l

मगर हो जाती है ये अनजाने में,
इस बात से हम रज़ा रखते हैं l
फिर भी किसी को फर्क नहीं पड़ता,
और यहाँ हम बे वज़ह मरते हैं
इसलिए आज चैन से सो जाने की वज़ह रखते हैं l

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