विश्व सारा परिवार हमारा
क्या रखा है मुसलमान बनने में ?
ना ही कुछ मिलेगा हिन्दू बन
जाने में
ना गुरुद्वारा इन्सान बनाएगा
ना बाइबिल से तू इंसानियत
पायेगा |
न कोई निशान ना कोई पहचान,
जिस्म से तू भी इन्सान,
जिस्म से मैं भी इन्सान,
न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान |
धर्म के खेल पे बच्चों को सजा,
कहीं दुश्मनी कहीं दंगो को
रचा |
क्या फर्क रखता है ईश्वर खुदा
भगवान ?
वो भी है लापता ये भी है बे निशान |
कहाँ किसी को कतल करने का हक
है ?
न ये गीता में लिखा है ना
कहती है ये कुरान |
ना पर्दा लिखा है औरत पे,
न उनकी जन्नत है बस घर के काम |
ऐसा फतवा कब लिखा खुदा ने ?
शायद गलती कर रहा कोई इन्सान |
कहाँ है मेरा खुदा तेरा भगवान ?
कहाँ है मुझमे बंदगी और इंसान ?
खून बहाने से ना खुदा तेरा
होगा
ना भला मेरा होगा |
ना चढ़ावे से तेरा खुदा अमीर
होगा,
ना गरीब का घर रोशन होगा |
कट्टर मैं भी हूँ मगर इन्सान
को बचाने में
क्या रखा है दंगों में लाशें
बिछाने में |
क्या हो जाता है हमारी समझ को ?
खुद के धर्म पे हमला बर्दास्त
नहीं
और लग जाते है दुसरे धर्मों
को छोटा दिखाने में |
सवाल भी ठीक है
कि क्या फायदा है इन्सान बन
जाने में ?
जवाब है एक दिन बिना धर्म के
बिताओ |
कुछ नहीं इन्सान बन के दिखाओं |
कल जो थम गया था हाथ मदद का,
आज उस गेर मजहबी का हाथ थाम के दिखाओं |
वैसे क्या रखा है बदल जाने
में ?
कैसे फिर में व्रत उपवास रोजा
करूँगा ?
इंसानियत छोड़ खुदा को खोजा
करूँगा |
क्यों ना सब में भाईचारा हो
क्यों ना सब जगह बस एक धर्म
हमारा हो
ये धरती तेरा घर यही मेरा घर
बस एक परिवार हमारा हो
कोई न हो मदद को धर्म जात का
सोदागर
बस इन्सान को इन्सान का सहारा
हो |